आप

आज ये कैसा दृश्य है ,
किस मोड़ पर खड़ा मनुष्य है ?
परिचय है , फिर भी स्वयं से अपरिचित
निश्चित होकर भी इस प्रकार अनिश्चित
धुंध स्वरूप मिथ्य ने,
आज पुनः सत्य का सूर्य छुपाया है।

हाड़- मांस का बना एक पुतला,
आज चुनाव का समय आया है,
आप ही बनना मदारी या
फिर ओढ़ना जमूरे की काया है?

जब ठान लो डमरू पकड़ने का,
ताल नया बजाना है
जो अंतरद्वंद की निनाद गूँजी
वह ही युद्ध की शंखनाद है।

लड़ने को सब हैं आतुर,
सर्व प्रथम नाम अपना आया है?
आप ही अपने प्रश्नों के ,
उत्तर देने का मूल अवसर पाया है।

रोचक है युद्ध विशाल
धारन करो आत्म- विश्वास की ढाल
कर्म ऐसी तलवार बने
तोड़ दें जो हार के काले जाल।

जीत के सुनहरे किरणों का
आगमन तभी संभव होगा ,
लालसा जब तक बनी रहेगी
शिखर पर हर बार सूर्योदय नया होगा ।

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