स्तब्ध

खड़ी हूँ मैं आज जहाँ ,
हर तरफ शोर ही शोर है ।
कहीं सुर बगावत के गूँजते,
तो कहीं माँगों की दहाड़ ।
बिगुल दमन का बजा रहा
एक नए जंग की हुंकार है।

सच और झूठ में फ़र्क समझना
अब सांस लेने से ज़्यादा ज़रूरी है ,
क्यों धीरज और सहनशीलता से बढ़ रही यूँ दूरी है ?

मैं स्तब्ध खड़ी हूँ भीड़ और आवाज़ों के बीच ,
विचारों के समुद्र में ढूँढ रही वह एक क्षण -
क्षण जो मुझे स्पष्टता दे इस अराजकता से ।
गलत विचारों का अंधकार नहीं चाहिए मुझे,
अब देर और नहीं जब सत्य का सूर्य उदय होगा ।

Comments

  1. Powerful and expressive .. bahut badiya .. mujhe bhi hindi main likhna start karna chayeye :)

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    1. धन्यवाद...
      हम आपके पोस्ट की प्रतीक्षा करेंगे !

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