झूठ

झूठ कभी सहूलियत  है ,
तो कभी ज़रूरत भी है ।
कभी वजह है ,
तो कभी बेवजह भी ।
किसी काले सच का मुखौटा कभी ,
तो कभी निर्मल सी मासूमियत की मूरत भी बन जाता है ।

सच बहुत जलता है झूठ से...
उसका कोई रंग नहीं होता,
लेकिन कितनों की दुनिया बेरंग कर देता है ।
झूठ के कई संगी - साथी है ,
पर सच अनंत-काल से अकेला चलता आया है ।
कई झूठ जीएे जा सकते है,
मगर अक्सर सच भारी बोझ की तरह ढोया जाता है ।

गजब है जिंदगी की रवानगी
यूँ बहती समय की धारा से...
जो किनारा सच का , चले झूठ के साथ ,
दोनों के रेत बहाकर , बनाएँ-बिगाड़े हालात ।

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