लौटा दो
कभी अगर मेरी कोई किताब तुमने ली थी पढ़ने के लिए,
लौटा दो वो आज मुझे।
उनसे जुड़ी यादें और सीख न लौटाने को कहूँगी
पर आओ अगर थोड़ा वक़्त लेकर तुम,
तो बताना क्या खोया और पाया उनसे।
कभी अगर मेरी कोई किताब तुमने ली थी पढ़ने के लिए,
लौटा दो वो आज मुझे।
किसी पन्ने पर धूल का एक कण मेरा भी है,
आखिर मेरे अतीत का एक हिस्सा जो उसमें क़ैद पड़ा है ।
वो तुम्हारे आज के हिस्से से बतिया रहा है,
तुम्हारे उंगलियों के निशान उन बातों के गवाह हैं।
कभी अगर मेरी कोई किताब तुमने ली थी पढ़ने के लिए,
लौटा दो वो आज मुझे।
ज़िन्दगी की किताब में शायद,
कुछ पन्नो या चंद शब्दों का ही साथ था ।
आगे की कहानी का पता नहीं,
जितना जिया शायद वो भी बेहिसाब था ।
कभी अगर मेरी कोई किताब तुमने ली थी पढ़ने के लिए,
लौटा दो वो आज मुझे।
दो किताबों को लेकर कुछ लोग,
गुज़रे थे यहाँ से झगड़ते हुए ।
उसी झगड़े की आग में मेरी किताबें भी,
सब की तरह खाक हुई ।
अब इस खण्डहर में रहने के लिए
अकेलेपन की आग बुझानी है ।
तो कभी अगर मेरी कोई किताब तुमने ली थी पढ़ने के लिए,
लौटा दो वो आज मुझे।
Comments
Post a Comment