आज फिर वापस आई हूं
एक अर्से बाद,
आज फिर वापस आई हूं ।
उन आंखों सी गलियों में फिर दर्बदर भटके थोड़ी देर,
जहां पुराने यादों सा
एक- एक मोड़ और कोने का,
मन में छपा पूरा नक्शा था ।
अपने जहान से कुछ दूर क्या हुए, देखा उसमें समय का फेर ।
हाँ आते आते शायद हो गई बहुत देर,
जब कुछ ना थे तो हर शुरुआत वहीं से थी ।
आसरा था तुम्हारा थक हार के लौटे जब भी ,
पर देखो ज़रा आज मुझे तुम,
अपने ही बनाए दीवारों के नीचे हुई मैं ढेर ।
जब वो पुराने ठिकाने में अपना अक्स दिखता नहीं है,
एक अजीब सा दर्द दिल को चुभता है ।
चीखती हैं पुरानी यादें कई,
बेकफ़न और रहने की उनमें ताकत नहीं ।
जिनकी एक - एक परत से हम वाक़िफ थे,
अब हल्की मुस्कानों से दूरियों का भार पता चलता है ।
ढूंदने आई थी मैं अपने उस हिस्से को,
आधे पूरे जीयें जिनमें कई हमने किस्से वो,
भाग दौड़ में तिनका - तिनका मरते मारते मन जो,
पुराने मंज़िल में भुलाना चाहा बेहिस को ।
' एक पुराना मौसम लौटा , याद भरी पुरवाई भी । ' *
बरसते जब कभी भी आसमान या मेरे नैना ,
चुप्पी थामे साथ रहे मेरे, दिन हो या हो रैना ।
मौसम शायद आज लौट आए पुराने,
पर यादों के सिवा कुछ और पुराना भी तो नहीं ।
नए पुराने, सही-गलत को परे रख के,
इस नश्वर शरीर के मकान में
रूह का घर ढूंडने आई हूं ।
एक अरसे बाद,
आज फिर वापस आईं हूं ।
* गुलज़ार साहब के द्वारा लिखी गई ग़ज़ल ' मरासिम ' एल्बम का एक ग़ज़ल है ।
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