त्योहार

डिंग-डॉन्ग

कुहू ने मोबाइल को सिरहाने रखा और दरवाज़ा खोलने गई । आज कई दिनों के बाद उसने रेस्तराँ से खाना मँगवाया था । अस्पताल में फ़ीका खाना खाते -खाते ,बेचारी का मन उब गया था।

दरवाज़े के इस पार , राजेश का पारा चढ़ रहा था । दो और डिलीवरी बाकी थीं और समय बहुत कम , फिर से तंख्वा से पैसै ना काटले रेस्तराँ वाले । त्योहार के मौसम में दिल्ली के भयंकर ट्रैफ़िक ने जान कोयला कर रखा था ।

कुहू के दरवाज़ा खोलने पर, राजेश की नज़र उसके कान के बालियों पर पड़ी - हीरे की बालियाँ... उन चंद हीरों की चमक ने, मानो एक ही पल में उसके गरीबी और मजबूरी के अंधकार को खत्म कर दिया । पर ये लालच की चमक तो बहरूपीया निकली- जुर्म का नक्काब पहनने में बिलकुल देर न लगाई । यहाँ कुहू त्योहार की खुशी बाँटने के लिए पानी और मिठाई लेकर लौटी, वहां राजेश ने एक भारी सामान से उसके सिर पर मार दिया । हड़बड़ी में और जो कुछ भी मिला , वो बैग में दबोचकर भागा ।

कुछ दिनों के बाद, राजेश पंडित को अपने नए पक्के घर में गृह-प्रवेश के पूजा के लिए लेकर जा रहा था । "बेटा , यहाँ कितने दिन हुए आए हुए?" बूढ़े पंडित ने पूछा । राजेश मुस्कराते हुए बोला- "बस कुछ महीनों की बात हैं , इस घर के अचानक बिक्री की खबर मिली तो सोचा त्योहार के मौसम में अपनी माँ के चहरे पर सुकून की मुस्कान देखूं  । " कुछ देर बाद, राजेश के मन में न जाने ऐसा क्या सूझा कि अचानक पूछ बैठा - "अच्छा पंडित जी, यहाँ आस-पास ज्यादा लोग नही रहते तो किसी से पूछ न पाया पर अचानक यह घर खाली क्यों हो गया? " पंडित जी का झुर्रियों से दबा चहरा और मुर्झा गया । एक लंबी साँस लेकर ,उन्होंने बोलना शुरू किया - "एक छोटा सा परिवार का वास था ,तुम्हारे आने से ठीक पहले । एक सुजन , उसकी श्रीमती और एक पुत्री- उसका नाम कुछ याद नहीं आ रहा अभी । एक बहुत विचित्र बात थी इस परिवार की- दोनों का, माने पुत्री के माता - पिता का, धर्म में किसी प्रकार की रुचि न थी किन्तु पुत्री की दान क्रिया में विलीनता अतुल्नीय थी । जब पुत्री का दिल्ली शहर जाना हुआ पढ़ाई के कारण, तब भी त्योहारों के वक्त घर आते ही मंदिरों -मज़जिदों के आसपास दान करते दिख जाती थी । उसके मुख पर वो हर्ष की लहर देखते बनती थी । सुनने में आया की उसकी अकाल मृत्यु हो गई शहर में , शायद चोर ने ही मार डाला होगा क्योंकि उसके हीरों की दाग़ीने और रुपये -पैसे न थे । चोर कई महीने बीत जाने पर भी पकड़ा न गया । पूरा परिवार शोक में डूब गया , और दोनों चले गए कहीं दूर । पर जाने से पहले दान क्रिया कर गए अपनी पुत्री के याद में । "

यह सब सुन , राजेश ग्लानी से शोक - विवहल हो उठा । स्तब्ध , वह कुछ क्षण वहीं रसते पर खड़ा रह गया । फिर कुछ सोच - विचार के बाद बोला , " मैं इस घर का रीत न तोड़ूंगा । पूजा के बाद , आप मुझे दान क्रिया का उपाय बतायेंगे ? "

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